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Thursday 28 January 2016

मरने को मुझे जमीन पर छोड़ दिया था: स्मृति ईरानी

समाज में बेटी के पैदा होने को अभिशाप मानने वाले लोगों के लिए देश की सबसे युवा कैबिनेट मंत्री की कहानी शर्मसार करने के लिए काफी है. नरेंद्र मोदी की सरकार में मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति जुबिन ईरानी जब पैदा हुईं थीं तो घर के ही लोगों ने उनकी मां को ताने मारने शुरू कर दिए थे. उनकी मां को हमेशा कहा जाता था—बेटी अभिशाप है.

लेकिन आज वे जिंदा हैं और देश की ताकतवर मंत्रियों में शुमार की जाती हैं तो उसका श्रेय प्रगतिशील सोच वाले उनके माता-पिता को जाता है. बचपन में एक बार स्मृति गंभीर बीमारी से ग्रस्त थीं. ऐसी स्थिति में परिवार की एक बुजुर्ग महिला ने उन्हें बिना किसी वस्त्र के जमीन पर छोड़ दिया था ताकि मर-खप जाए. 


स्मृति इंडिया टुडे के साथ उस घटना का स्मरण करती हैं, ''मेरी माता जी ने विरोध किया तो उन्हें कहा गया कि बेटी है और मर जाएगी तो तुम्हारी जिंदगी आसान हो जाएगी. पिता जी घर में सबसे छोटे थे. उन्होंने भी विरोध किया. माता-पिता के प्रगतिशील सोच की वजह से ही आज मैं यहां पहुंची हूं. ''

दिल्ली के ही गरीब परिवार में पैदा हुई स्मृति की शुरुआती पढ़ाई उनके ही शब्दों में 'टेंट वाले सरकारी स्कूल' में हुई है. मुफलिसी के दिन कैसे थे, स्मृति आज भी जब उसे याद करती हैं तो चेहरे पर दर्द साफ झ्लकता है. वे कहती हैं, ''मैंने जिंदगी में वे दिन देखे हैं. जब मैं पांचवीं या छठी क्लास में थी. तब पायलट पेन नया-नया आया था. मेरे पास वह पेन खरीदने का पैसा नहीं था. मैं वहां से आई हूं. मैं लोगों को समझ नहीं पाती क्योंकि मैं ऐसी स्थिति से आई हूं. जब आप उन परिस्थितियों से आते हैं तो वाकई बहुत अच्छा लगता है. '' तीन बहनों में सबसे बड़ी स्मृति ने जब अपने दम पैरों पर खड़ा होने के लिए दिलवालों की दिल्ली छोड़ मायानगरी मुंबई का रुख किया तो उन्हें वहां मैकडोनल्ड्स में झाडू-पोंछा और वेटर का भी काम करना पड़ा, लेकिन उनका आत्मविश्वास नहीं डिगा. पर उन्हें पहचान मिली टीवी लाइन में जब उन्होंने क्योंकि सास भी कभी बहू थी टीवी धारावाहिक में तुलसी की भूमिका अदा की. आज भी वे इसी उपनाम से जानी जाती हैं. लेकिन टीवी इंडस्ट्री में आने से पहले वे पत्रकारिता में भी हाथ आजमा चुकी थीं. वे बताती हैं, ''मीडिया लाइन में काम किया है. बोरिंग टीवी इंटरव्यू लिए. घंटों इंतजार किया. मुझे सबसे खराब तब लगता था जब 11 बजे कुछ इंटरव्यू या खबर लेकर आती थी और संपादक कहते थे डेडलाइन 12 बजे तक है. ''

अब देश की युवा कैबिनेट मंत्री ईरानी अपने राजनैतिक करियर के बारे में कहती हैं, ''मैं राजनीति में राजनीति करने नहीं आई. विधिवत मुझे मेंबर बनना पड़ा इसलिए बीजेपी की मेंबर बनी, वरना संघ और समाज सेवा का काम मैं पहले से करती आ रही थी. मैं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के परिवार की तीसरी पीढ़ी से हूं. '' लेकिन राजनीति के बारे में उनका ख्याल परिवार की अन्य दो पीढिय़ों से अलग है. वे कहती हैं, ''परिवार की सोच थी कि सेवा भाव से काम करना है तो सामजिक क्षेत्रों में ही रहो, राजनीति में क्यों जा रही हो? लेकिन मैंने देखा है, पॉलिसी में परिवर्तन तभी आता है जब आप पॉलिसी का हिस्सा बनें. वह राजनीति से ही संभव है. मैं सही मायने में बदलाव चाहती थी. '' अपनी राजनैतिक सफलता पर वे कुछ इस अंदाज में चुटकी लेती हैं, ''मैं हमेशा कहती हूं कि जो मीडिया में राजनीति को आसानी से हैंडल कर ले वह राजनीति को बड़ी आसानी से हैंडल कर सकता है. ''

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